जिन्दगी की शाम जब ढलने लगी तभी एक रोज तनहाई में ख्याल आया कि दिन रात खुशहाल जिंदगी के सपनों का पीछा करते करते थक सा गया हूं। मेरी तमाम उम्र कटी इस सुख सुविधा कमाने में, जिंदगी का बेशकीमती वक्त बीत गया दो वक्त की जरूरत जुटाने में हताश हू यह सोचकर कि...