पूज्य गुरुदेव की लेखनशैली उनकी तरह ही सहज-सरल है। हमेशा की तरह इस ग्रंथ में भी परम पूज्य स्वामीजी के लेखन की मौलिकता को बनाए रखने का प्रयास किया गया है। अत: कुछ गैर हिन्दी शब्दों को यथावत् रखते हुए उनके आशय को कोष्टक में लिखा गया है। शाब्दिक स्तर पर...